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प्रकार की धृष्टता है उसके लिये मुझे क्षमा करें। उत्तर न देना भी दुर्विनीतता का कारण न बन जाय ऐसा सोच कर कुछ कहता हूँ आप जरा गौर फरमावें ।
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मैं अपने पिता से केवल क्रीडा करने की आज्ञा लेकर ही घर से निकला हूँ। जाति से मैं एक वणिक पुत्र हूँ । वनिये के घर में राजकन्या को बनियानी बन कर रहना होता है, जो आपके कुल की शोभा का कारण न होगा । कहां वैश्य घर और कहां राजमहल की लीला १ इसका परिणाम पत्थर के नीचे दबी हुई अंगुली की तरह दुःखदायी ही होगा | बिना विचारे किये हुए कार्य के लिये हमेशा पश्चाताप करना पडता है अतः महरबानी कर इस प्रस्ताव को आप मेरे सामने उपस्थित ही न करें ।
कुमार की इस निस्पृहता-भरी वाणी को सुन कर राजा रानी और राजकन्या का भाई वामांग सभी क्रमशः कहने लगे- कुमार ! संपत्ती भाग्य के अनुसार ही मिलती है । पिता अपने उसी रूप में रहता है और पुत्र राजा बन जाता है क्या इतिहास इस बात की साक्षी नहीं देता कि कई राजपुत्र मैत्रिपुत्र और श्र ेष्ठिपुत्र भाग्य की परीक्षा के लिये पृथ्वी पर घूमते हुए पिता के बिना भी राज्य धन और कन्याओं के स्वामी नहीं बने ?