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श्रीचन्द्र ने दीपशिखामें इस कन्या का पाणिग्रहण किया था । क्या आपको पता नहीं है ?
सेठ सेठानी आश्चर्य चकित हुए विस्कारित नेत्रों से अपनी पुत्रवधू को देख रहे थे कि -- चन्द्रकला बड़े ही चादर से सास-ससुर के पैरों पड़ी। चिरंजीवी हो पुत्रवती हो, सौभाग्यवती हो इत्यादि बहुत २ आशीर्वाद दिये । आरती -- और मंगलाचार करके पुत्रवधू को घर में प्रवेश कराया । दहेज की सामग्री यथास्थान रख दी गई। कन्यापक्ष के आदमियों को यथोचित उतारे दे दिये गये । वाइयां बांटी गई ।
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अपने २ स्थान में सबके चले जाने पर सेठ ने कहाबेटा ! ब्याह करके आये और उसकी चर्चा भी नहीं की ? हमारे मनकी उमंग तो मनमें ही रही । अरे ! पता लगता तो नगर प्रवेश का ठाठ तो मैं करता ही । अस्तु, जो हुआ सो अच्छा ही हुआ। ऐसा कह सेठने चन्द्रकला के लिये और उसके साथ की दासियों के लिये रहने योग्य एक सुन्दर महल दे दिया । कुमार ने भी बड़ी उदारता से अपनी मधुर वाणी से चन्द्रकला का स्वागत किया ।
सेठ लक्ष्मीदत्त ने पुत्र- विवाह के उपलक्ष्य में बड़े २ सेठ साहुकार कौटुम्बिक -स्नेही नागरिक सभी लोगों को