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( २३७ ) कुलशील वाले मुझे, अपनी कन्या और राज्य जैसी महत्वपूर्ण वस्तुओं को प्रदान करने का साहस आप कैसे कर रहीं हैं ?
इस पर रानियों ने और उस राक्षस ने कहानरोत्तम ! तेजस्वी अपने तेज से ही पूजे जाते हैं। महापुरुषों के अलौकिक गुण कर्म ही उनके ऊचे कुल एवं सत्यशील के परिचायक होते हैं। अतः हे कुमार निःशंकोच होकर हमारी इच्छाओं को पूर्ण कीजियें।
"अनिषिद्ध स्वीकृतं" के न्याय से अपनी दैविकशक्ति से धन, जन, सेना, हाथी, घोडे आदि सभी आवश्यक वस्तुओं को एकत्रित करके कुमार को कुण्डलपुर का राज्य दे दिया, और इसके बाद बड़ी धूमधाम से कुमारी चन्द्रमुखी का विवाह भी उसके साथ कर दिया।
राजा होजाने पर कुमार ने अपनी नाम-मुद्रा दिखला दी और अपना सम्पूर्ण परिचय दे दिया । कुमार को महाराज प्रतापसिंह का सुपुत्र जानकर सबको बड़ी खुशी हुई । रानियों ने उसे अपने जामाता के रूप में पाकर अपने को धन्य माना। __एक रोज राक्षस ने कुमार श्रीचन्द्र से कहा राजन् ! इस नगर के भूतपूर्व राजा द्वारा पूर्वजन्म में मैं धोखे से