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परन्तु उसका कहीं पता न चला। जब यह बात सुलोचना को मालूम हुई तो वह लड़खड़ा कर भूमि पर गिर पड़ी, और बेहोश हो गई। माता-पिता और दास दासियों द्वारा तरह तरह के उपचार किये जाने पर उसे कुछ होश हुआ। वह रो रोकर पृथ्वी पर नीर विहीन ग्रीन की तरह छटपटाने लगी । वह अपने श्रर्तनाद से दूसरों को भी रुलाने लगी । सारी रात्री उसकी इसी प्रकार बीती । उसने उसके वियोग में खाना-पीना और बोलना सभी छोड़ दिया । यह देख सभी ने उसका अनुसरण किया राज-परिवार की ऐसी अवस्था देख मंत्री किं कर्तव्यमूढ हो गये ।
राजा ने पुरवासियों को बुलाकर पूछा कि क्या कोई यहां पर कुशस्थल से आया हुआ व्यक्ति है ?
यह सुनकर उपस्थित जनता में से बहुतेरे व्यक्तियों ने एक साथ उत्तर दिया, "राजन् कुशस्थल के यहां पर अनेकों व्यक्ति हैं । कहियें आप किसे पूछते हैं ?"
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राजा द्वारा उसके नाम और निवास स्थान आदि के बतलाने पर एक सेठ ने कहा, "महाराज ! कुशस्थल में लक्ष्मीदत्त का पुत्र जो श्रीचन्द्र है, वह मेरे स्वामी का जमाई है। जैसी गूठी का निशान आप बताते हैं
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