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कुमार ने मदन को यही उपदेश दिया कि तुम योगी की भांती मौनी बने रहो । बस यही तुम्हारा काम हैं । अवशिष्ट सभी काम मेरे सिपुर्द हैं। सारे काम द्वारपाल रूपी कुमार ने अपने उपर लेकर अपने चातुर्य से, सारे नगर को राजा, राजकन्या और मंत्रियों वगैरह सभी को खुश कर दिया ।
राजा उसके चरणों से इतना प्रसन्न हुआ कि वह स्वयं जाकर उसे अपनी कन्या के साथ विवाह करने की प्रार्थना करने लगा परन्तु कुमार रूपधारी मदन उपर से आनाकानी करता रहा । अन्त में बड़े कष्ट से राजा ने उसे अपनी कन्या से विवाह करने के लिये राजी किया ।
द्वारपाल ने मंत्रियों से कहा कि आप विवाह करने में देर न करो - शीघ्र ही इस काम को पूर्ण करो । राजा ने दूसरे दिन हो गोधूलिक लग्न नियत कर दिया और दो जगहों पर विवाह की सामग्री इकट्ठी करली | श्रीचन्द्र के विवाह के उपलक्ष में पुरवासियों ने प्रसन्न हो कर शीघ्र ही नगरी को अनेकों प्रकार से सजाकर अमरपुरीसा बना दिया ।
मदन खुशी के मारे फूला न समाता था. पौफट ने से पहले ही वह उठ कर अपने नित्य के धार्मिक कृत्यों