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( २७६ ) ही उसे लिख कर हृदयंगम कर लो जिससे तुम्हारा यह काम भी पूर्ण हो जायगा ।" मदनपाल ने . उत्तर दिया, "मित्र ! अब पढ़ने लिखने का समय नहीं रहा। इधर तो लग्न वेला निकटातिनिकट आरही है और अब इतने संकीर्ण समय में कोई भी बात किस तरह याद की जा सकती है। कहा भी है
“संदीप्ते भवने तु कूप-खननं, प्रत्युद्यमः कीदृशः।" "आग लगे खोदे कुआ, कैसे आग बुझाय ।।"
यद्यपि तुम मुझ से उम्र में छोटे हो लेकिन रूप में समान ही हो, और वस्त्राभूषणों के धारण करने पर
और भी अधिक सौन्दर्य को प्राप्त हो जाओगे । अतः मेरी तुमसे यही प्रार्थना है कि तुम मेरा वेष ग्रहण कर लो और तुम्हारा वेष मुझे दे दो और मेरी जगह पर तुम विवाह करके विवाहित राजकन्या को मुझे सौंपदो।" कुमार ने उत्तर दिया “यदि तुम्हारी 'ऐसी ही इच्छा है तो मुझे यह बात भी स्वीकार है।"
फिर क्या था ? मदन पालने उसका द्वार पाल का वेष धारण कर लिया, मगर श्रीचन्द्र ने उसके वस्त्र न पहने । उसने तो अपने ही वस्त्र और आभूषणों से अपने को सजाया।