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( २८० ) इधर वहां पर आकर के राज-स्त्रियों ने वैवाहिक विधि के अनुसार उसके घर पर मांगलिक कृत्य किये। इसके बाद वह सुवर्ण और रत्नों के आभूषणों को धारण करके अपने कुण्डलों और नाममुद्रा से शोभायमान हाथी पर सवार हुअा। सिर पर सफेद छत्र लगाया गया । चंवर ढुलने लगे। सुवर्ण और रजत दण्ड लिये छड़ीदार और चौपदार आगे आगे चलने लगे। बन्दीजन स्तुति करते हुए चल रहे थे। बाजे बज रहे थे। नगर के लोग और सैनिकों की पंक्तियां आगे आगे चल रही थी। बड़े महोत्सव के साथ वह नगर में होकर राजमहल में पहुँचा। वहां पर तारक भट्ट ने उसे पहचान लिया और उसकी प्रशंसा में बोल उठा,. तझ्या विवाह समए, धनवइ पमुहाण अट्ठकन्नाणं ।
सिरिचन्दो सिद्धिघरे, जो दिट्ठो सो इमो जयउ ।।
यह सुनकर राजा वगैरह ने उसे खूब दान दिया और कुमार को गोदी में लेकर सजा सिंहासन पर बैठ गया । कुमार के रूप,नाम-मुद्रा और कुण्डलों को बारबार देखते हुए राजा ने राजकुमारी को दूसरे सिंहासन पर बिठाकर कोई शास्त्रीय चर्चा छेड़ने की आज्ञा प्रदान की । पाठक उस चर्चा को अगले प्रकरण में ध्यान से सुनें ।