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काव्य-शास्त्र-विनोदेन, कालो गच्छति धीमताम् ।
व्यसनेन च मूर्खाणां, निद्रया कलहेन च ॥ । अथोद-पण्डित स्त्री-पुरुषों का समय काव्यों की एवं शास्त्रों की चर्चा के विनोद में हंसी खुशी से बीतता है, तो मूरों का समय जूा, तास, भांग आदि के व्यसन में, नींद में, या लड़ाई झगड़े में ही बीतता है।
भोजन के बाद का समय था । सूर्य की गति अपूर्व हो रही थी। घाम से बचने के लिये मकानों में खसखस की टाटियों पर गंगा-गुलाबजल के छिड़काव हो रहे थे। उनसे मोठी तर खुशबू के साथ ठंडी हवा की लहरें निकल २ कर दिल और दिमाग को तर कर रही थीं। कोई अंगड़ाइयां लेते घरों में सोते पड़े थे। कोई पराई