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कुमार ने उत्तर में कहा-माता जी! आप अधीन होइए, सब अच्छा ही होगा। - इस प्रकार अपनी सास को आश्वासन देकर कुमार ने मंत्री की ओर दृष्टि घुमाई और बोला-"मंत्रिवर्य ! आप इन सबको साथ लेकर कुएडलपुर चले जाइए। लीजिये यह पत्र वहां के मन्त्रियों को दे दीजियेगा वहां पर आप लोगों को किसी प्रकार की तकलीफ नहीं होगी। वहां आप सुख पूर्वक रहिएगा। इस समय मैं कुछ आगे जाऊंगा नहीं तो मैं भी आपके साथ ही चलता।
आप किसी भी प्रकार की चिन्ता न करें। कुछ समय पश्चात् आपका और मेरा मिलाप वहां हो जायगा।" इस प्रकार सबको सान्त्वना देकर, तथा उन सब से विदा माँग कर कुमार अपने पूर्ववेश को धारण कर वहाँ से रवाना हुआ और एक दूसरे देश में जा पहुँचा।
इधर वीरमती अपनी पुत्री और मंत्री आदि परिवार के साथ उस खदिर वन से चन्द्रपुर की ओर चल पड़ी। चलते चलते महेन्द्रपुर में जा पहुंचे । जब यह बात वहां के राजा को मालुम हुई तो उसने वीरमती को एवं उनके परिवार को अपने यहां आदर के साथ निमंत्रित किया । परस्पर एक दूसरे ने परिचय प्राप्त किया।