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ध्यान से देखियें, राधावेध साधने के लिए बडी २ उमंगोंको लेकर राजकुमार स्तम्भ के पास आते हैं। असफल होकर, निराशा और अपमान को अपने हृदय में लेकर ये लौट जाते हैं | देखियें, यह श्रीचन्द्र का वेष बनाकर कुमार कनकर आया है | देखियें इसने श्रीचन्द्र की तरह बाण चला दिया है। बाण लगा या नहीं तब भी उस कृत्रिम तिलकमंजरी ने उसके गले में वर माला डाल दो है । हा हा हा ! कितना सुन्दर नाटक है । ये भाट चारण - "सूरो सिरि चंदो जय" कहकर आशीर्वाद के साथ प्रशंसा के गीत गाते हैं । इस प्रकार नाटक - दिखानेवाले पुरुष को कुमार ने प्रसन्न होकर बहुतसा पारितोषिक प्रदान किया ।
नाटक देखकर मन ही मन कुमार प्रसन्नता का अनुभव करता हुआ खडा था । उस समय पास में खडी हुई राजकुमारी कनवती समुद्र के प्रति नदी के समान प्रेम से नाटकीय कुमार श्रीचन्द्र के प्रति उमड़ रही थी । उसने पास खडी अपनी धामाता के सामने लज्जा और संकोच को छोड़कर यह बात प्रकट कर दी । अहा ! कितना सुन्दर स्वरूप है । महामहिम इस उदार शूरवीर, धीर और गंभीर पुरुष को मैने मेरा जीवन-साथी मान लिया है। आज से यही मेरे पति हैं। वहां खडो मंत्री की कन्या प्रेमवती, सार्थपति की कन्या धनश्री ने और नगर
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