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की तारीफ सुनकर उस पर आसक्त हो गई है । उसीके आदेश से श्रीचन्द्र का चित्र लाने को कुशस्थलपुर जा रही हूँ ।
मदनपाल ने प्रियंगुमंजरी के चित्र को लेने के लिये भारी कोशीश की, परंतु वह सफल न हो सका, और योगिनी चली गई । मदनपाल कामज्वर से पीडित होकर दुबला होने लगा । मित्रों ने उसके पिता से असली हालत कह दी । उनने कान्ति- नरेश से उनकी कन्या की मांगनी की, किन्तु राजा नरसिंह ने उस मांगनी को ठुकरा दी। इस बात को जानकर मदनपाल अत्यधिक पीड़ित हुआ ।
पथिक ! वही मैं मदनपाल हूँ । पुष्प द्वारा आकृष्ट भौंरे की तरह उस निंद्य सुन्दरी के रूप से खींचा हुआ मैं यहां आया हूँ ।
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यहां आकर मैं राज- माली के मकान में ठहरा । मालिन हमेशा राजकुमारी के पास जाती थी । उसके साथ मैंने प्रियंगुमंजरी के पास संदेशा भेजा कि - हेमपुर का राजकुमार तुम्हारे चित्र को देखकर तुम्हारे मोहपाश में बंधा हुआ यहां आया है। कृपा करके दर्शन दे दो ।