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( २७३ ) के लाल पुष्प जैसे तुम मदनपाल हो, और कमल पुष्प जे से वह कुमार श्रीचन्द्र हैं। उसने उपरोक्त भाव ऐसे. प्रगट किये थे परन्तु अपने को बुद्धिमान् समझने वाला व्यक्ति इतना भी न समझ सका खैर । अब इसे ऐसी सलाह देनी चाहिये जिससे इसके मन को संतोष हो ।
फिर कुमार ने उस मदनपाल से कहा, "भाई अब क्या करोगे ? क्या तुम्हारी कभी चार आंखे हुई हैं ?" उसने उत्तर दिया, “पथिक ! न तो मैंने उसे कभी देखा न उसने मुझे कभी देखा है । मित्र ! तुम्ही बतायो यह मेरी मनोवाञ्छा कर पूर्ण होगी ! तुम परोपकारी हो अतः मुझे कोई मार्ग दिखलाओ।
इतने में शंख की ध्वनि सुनाई दो। वे दोनों वहां से उठ कर उपवन में चले गये और मन्दिर की ओर दृष्टि गड़ा कर किसी पेड़ की आड़ में खड़े हो गये। इतने में सखियां समेत राजकुमारी गाजे-बाजे के साथ आई और मन्दिर में प्रविष्ट हुई । वहां पर खूब नृत्य और गान होने लगा। मृदंग, बांसुरिये और बीणाएँ बजने लगी। मन्दिर कुछ ही क्षण में गान-गृहसा प्रतीत होने लगा।
इसी बीच में धूलिधूसर वस्त्र पहिने किसी स्त्री ने शीघ्र ही मन्दिर में प्रवेश किया। उसके प्रवेश करते ही