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( २६२ ) से परेशान थे वह वर आज अपने आप प्रतर्कित भाव से ही मिल गया ! मिल गया !! मिल गया !! ___ यह बात सुनते ही चन्द्रलेखा ने अपना सर लज्जा
झुका लिया, और माता की आज्ञा पाकर शीघ्र ही कुमार के गले में वरमाला डाल दी। उस समय पतों ने हिल कर, कलियों ने मुस्करा कर, और पेड़ों ने फलफूलों की वर्षा करके कुमार का स्वागत किया। कन्यापक्ष वालों ने भी नाना प्रकार से कुमार का खूब आदर सत्कार किया।
उनके द्वारा आग्रह पूर्वक पूछने पर कुमार ने अपना ठीक ठीक परिचय दे दिया तथा मुद्रा को दिखाकर अपना ठीक नाम प्रकट किया। उनके वचनों को सादर मानते हुए कुमार ने राजकुमारी चन्द्रलेखा के साथ पाणिग्रहण करलिया । कर-मोचन के अवसर पर उसे विष को दूर करने वाली कई मणियां तथा अन्य बहुत सी बहुमूल्य' वस्तुएं प्राप्त हुई । तत्पश्चात् वीरमती ने अपने पंचवर्षीय पुत्र को कुमार की गोदी में बिठाकर कहा-हे उदारता और वीरता में अद्वितीय महापुरुष ! इस वीरवर्मा को आप जैसा बना देंगे, वैसा ही यह बन जायगा। अतः आप इसे अपने साथ रखकर मेरी इतनी बात मानने की. कृपा करें।