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( २५४ ) महेन्द्रपुर की राजकुमारी की आंखें खोल कर, उस में रस पैदा करके श्रीचन्द्र ने आगे का रास्ता लिया । चलते हुए किसी एक जंगल में वह पहूँच गया। पुण्यवान्-पुरुषों के लिये जंगल में भी मंगल हो जाता है, पुण्य-लीला करता हुआ कुमार श्रीचन्द्र जंगल में एक सुन्दर सरोवर देखता है। ,
सरोवर में मोती के समान निर्मल-पानी पर कमल खिल रहे थे। चकवे, सारस, और हंस उसमें कूज रहे थे। किनारे पर हरे भरे वृक्षों के उन्नत शिखरों पर मयूरों के नाच हो रहे थे। इस दृश्य को देखकर कुमार की इच्छा हुई कि इन पक्षियों के बीच जाकर इस सरोवर में जलक्रीडा करे । उसने कपडे उतारे, और स्वयं पानी में उतर गया । वह जल क्रीडा में इतना लीन होगया कि उन जलचर पक्षियों के बीच अपना अस्तित्व भी भूल गया । उसने खूब ही तैराकी की ओर खूब ही गोते लगाए, तथा खूब छक कर नहाया। जब जलक्रीडा से उसका जी भर गया, तो वह बाहर निकला, कपडे पहने,
और सरोवर की शोभा को निरखता हुआ उसके किनारे किनारे चला।
चलते चलते उसे एक उद्यान सा दिखाई पड़ा। वहां पर उसने एक ओर तो पाश्रम, दूसरी ओर हाथी