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(२५६ कुछ समय पश्चात् मेरे भी चन्द्र की कान्ति के समान एक कन्या हुई जिसका नाम बडे प्यार से मैंने चन्द्रलेखा रखा, यह जो तुम्हारे सामने स्थित है, यह वही मेरी कन्या चन्द्रलेखा है, और-दूसरी ये सब इसकी समवयस्क सखियां हैं।
चन्द्रलेखा के बाद मेरे एक पुत्र भी हुआ जिसका नाम वीरंवर्मा रखा, जो इस समय पांच वर्ष का है और यह हमारे साथ है।
एक समय राजा ने अपनी आत्मा को कालज्वर से ग्रसित देख कर अपने उनराधिकारी वीरवर्मा राजकुमार को अपने विश्वास पात्र मंत्री सदामति को सौंप कर कहा कि-मेरा राज्य इसी होनहार राजकुमार को देना अन्य को नहीं। यही मेरा अन्तिम आदेश है । यह कहकर राजा स्वर्ग सिधार गये।
राजा की मृत्युके पश्चात् बलगर्वित नरवर्मा ने अन्याय से हमारा राज्य छीन लिया । हम सब को वहां से निकाल दिया । तब हम सब मेरे पिता के नगर की तरफ रवाना हुए । मार्ग में एक बहुत बड़ा नगर आया । नगर के बाहर हम लोग ठहरे थे। वहां पर हमने सुना कि यहां पर एक बडा शकुनज्ञ आया हुआ है यह सुन मन्त्री