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( २५७ ) आकर उस नरवेशधारी तपस्वी कुमार को नारी की पोशाक प्रदान की।
छाया में सुखपूर्वक बैठे हुए उस बटु कुमार को देखकर उस बुढिया ने पूछा-भाई ! तुम कहां से आये हो ? मैं कुशस्थलपुर से आरहा हूँ । बटु ने उत्तर दिया। यह बात सुनकर सब बड़ी प्रसन्न हुई, और उन्होंने यह बात जाकर सबको कह दी जिससे वे सभी वहां आकर कुमार को घेर कर बैठ गई और पूछने लगी
हे भाई ! यह तो बतायो कि क्या वहां चंद्रकन्ना आई है । उसका विवाह किसके साथ हुआ है ? बटुक ने उत्तर दियाः-आप इस बात को सत्य समझे कि लक्ष्मीदत्त सेठ का पुत्र चन्द्रकला को व्याहकर कुशस्थलपुर में लाया है।
इस प्रकार उत्तर पाकर सबने अपनी स्वामिनी से कहा-हे स्वामिनी ! सुनो। यह बात कभी मिथ्या नहीं हो सकती। ___यह देख कर कुमार ने निश्चय कर लिया कि यही स्त्री इन सब में प्रधान है अतः उसने उसे नमस्कार कर विनय पूर्वक पूछा-हे माताजी ! आपका यहां कैसे आग