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( २४६ ) सकता हूं ? अगर दे भी हूँ तो देश-परदेश में मेरा क्या महत्व रहेगा ? यश के बदले में मुझे अपयश का भागी बनना पड़ेगा। दूसरी बात यह है, कि अगर मैं अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार इसको कन्या नहीं देता हूँ, तो मेरा वचन भंग होता है, और वचन-भंग होना मुझ सरीखोंके लिये बड़े कलंक की बात है । अतः प्राणों की राज्य की और धन की वचन-रक्षा के समक्ष कोई कीमत नहीं है ?" इस प्रकार अपने मन में संकल्प-विकल्प करता हुआ राजा अन्तःपुर में जा पहुँचा । वहां पर खूब धूमधाम से नाच गान के साथ उत्सव मनाया जा रहा था । राजा के मुख को मलिन देख सुलोचना ने अपने पिता से पूछा, " पिताजी ! आज खुशी के अवसर पर आपके चेहरे पर श्यामता क्यों झलक रही है ?" ___ यह सुन राजा ने उसका वृत्तान्त रानी को आदि से अन्त तक कह सुनाया और बोला, "मेरे उदास होने का यही कारण है । इसी बीच में पुत्री बोल उठी "पिताजी ! यह आप व्यर्थ का सोच कर रहे हैं। वह पुरुष जिसके विषय में आप ऐसा वैसा कह रहे हैं, वह वैसा नहीं है। वह बड़ा ही विचित्र, गुणशाली और शूरवीर है। जो कुछ मंत्रियों को कहा गया है, वह तो केवल उनकी वाणीका वैचित्र्य है।" इसके बाद उस राजकुमारी ने जो जो