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इसके अनन्तर वह कुमार अपने दिव्य वेष को छिपा. कर फिर उन्हीं गैरिक वस्त्रों को धारण.. करके एवं: मुह
और बालों पर भस्म रमाये राजा के पास गया। सुलोचना भी. उसके पीछे पीछे वहां आई । यथार्थ नाम वाली. सुलोचना.को देखकर राजा ने प्रसन्न होकर उसको अपनी गोदी में उठा लिया। ..
यह देख सभी अचरज में डूब गये और राजा तो इतना प्रसन्न हुआ कि मानो उसने कोई खोई हुई निधि पाई हो। कन्या के स्वस्थ होने का उत्सव पुत्र जन्म के उत्त्सव से भी बढ़कर मनाया गया । बादमें राजा ने उस सुलोचना को अन्तःपुर में भेज दिया और उसको दृष्टि युक्त देखकर सभी रानियें प्रसन्न हुई।
इधर राजा ने उस कार्पटिक को अपने महल में बड़े आदर से ठहराया और रसोई आदि के लिये बहुत से नौकर रख छोड़े । तत्पश्चात् राजा ने राजसभा में मंत्रियोंके साथ विचार विमर्श किया कि यह अज्ञात-कुल-शील व्यक्ति है । इसको कन्या देनी है, सो क्या करना चाहिये ? सलाह में कुल पूछने की ठहरी, और राजा की आज्ञा से एक मंत्री ने उसका कुल पूछ ही लिया । .कुमार ने हंसकर उत्तर दिया, "आपके विचार ठीक ही- हैं कि आप पानी पीकर घर पूरते हो तो मी हे