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( २४५ ) दिया। बाद में राजा द्वारा दिये गये आसन पर बड़ी नम्रता के साथ बैठ गया। - राजा द्वारा परिचय पूछे जाने पर कुमार ने कहा माहाराज ! कुशस्थल का रहने वाला एक नेत्र-वैद्य हूँ। आज आप के दर्शन से मैं अपने आपको कृतार्थ मानता हूँ।
राजाने कहा-हे महाभाग ! आज तुम मेरे और कन्या के अहो भाग्य से दैव योग से इधर आ निकले हो अतः हमारे उस कार्य को पूरा करो । उसके बदले में जो कुछ देने का है, उसे ग्रहण करो।
राजा के ऐसा कहने पर कुमार ने कहा-राजन् । आप का फरमाना ठीक है । गुरु कृपासे मुझे मंत्र और औषधि
आदि का अच्छा अभ्यास है । आप उस कन्या को दिखाइयें जिससे मैं उनका योग्य उपचार करू ।
राजा के आदेश से कन्या को वहां लाइ गई। उसे देख कर कुमार ने बडा दुःख प्रगट किया कि अरे ! कितना सुन्दर रूप और कैसा बुरा यह अन्धापन है। उसने उस सभा में ही पानी के योग से कुछ जमीन को पवित्र बनाया । उस स्थान के चारों ओर कनात लगवादी आंखों की चिकित्सा करने की इच्छा से कुमार ने कन्या