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( २४४ ) और प्रातः कालीन नित्य-कर्मों से निवृत्त हो श्री अरिहंत भगवान को नमस्कार करके अच्छे लग्न में श्रीमहेन्द्रपुर नगर में प्रविष्ट हो गया।
नगर-लीला देखते हुए कुमार किसी सेठ की दुकान पर जाकर खड़ा ही था कि एक ढिंढोरे की आवाज सुनाई दी। उसने सेठ से पूछा-"सेठजी ! यह क्या मामला है ?" तब सेठ ने कुमार को सारी कथा कह सुनाई, और कहा कि इस तरह ढिंढोरा पीटते २ लग भग छह महोने हो गये हैं। __इतने में ढिंढोरा पीटने वालों ने कहा 'भाइयों ! सुनो, जो कोई भी व्यक्ति हमारी राजकन्या के नेत्रों को स्वस्थ कर देगा तो राजाजी उसे अपना आधाराज्य देंगे, और उस राज-कन्या को विवाह देंगे"। यह सुनते ही कुमार ने शीघ्रता से उस पटह को छू लिया।
ढिंढोरा पीटने वालों ने जाकर राजा को इस बात की सूचना दी। राजाने बड़ी प्रसन्नता से उस कार्पटिकवेषधारी कुमार को छत्र-चामर और हाथी श्रादि भेज कर बड़ी सजधज और मान मर्यादा के साथ बुलाया । कुमार बड़े ठाठ से राज-सभा में पहूँचा। दरबार में पहूँच कर राजा को "विजयी भव-यशस्वी भव' का आशीर्वाद ..