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( २४२ ) एक दूसरे कमरे में ले गई और बोली स्वामिन् ! आइयें आप स्नान कीजियें । भोजन कीजिये और इस बिछे हुए पलंग पर श्राराम लीजियें । अन्य स्त्रियोचित सेवा के लिये मैं आप की दासी तैयार हूं। आप हमारे यहां पधारे हैं। हमारा अहोभाग्य है । आप के दर्शन मात्र से मेरा मन आप के आधीन होगया है। __उस रमणी की इस प्रकार की मीठी और चिकनी चुपड़ी बातों को सुन कर कुमार को शक होगया कि यहां कुछ दाल में काला है । अतः मुझे बड़ी सावधानी से रहना चाहिये। थोड़ी ही देर में कुमार ने सब बातें विचार ली । क्या करना चाहिये इस का भी निर्धार कर लिया। एकान्त मौका पाकर कुमार ने उस रमणी को पास पड़ी एक रेशम की रस्सी से बांध दिया, और उस का चुट्टा पकड़ कर क्रोधका अभिनय करते हुए पूछा कि बता तू कौन है ? यह आदमी कौन है ?. तुम्हारा क्या व्यवसाय है। सच सच बता दे । अन्यथा आज तेरी कुशल नहीं है। ___ कुमार की इस डांटडपट से भयभीत हुई. उस रमणी ने कॉपते २ कहना शरु किया अरे बाबा ! यह आदमी लोहखुर नाम का चौर है। यह मेरा बाप है । मैं इस