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इसके बाद राक्षस कुमार को लेकर रानियों के पास गया और बोला- हे बहनों ! मेरे और आपके सौभाग्य से ही ये कोई पुण्यात्मा यहां आये हैं। मैंने यहां का राज्य इनको सौंप दिया है। मुझे आशा है, कि ये इस राज्य का उद्धार करने में अवश्य ही समर्थ होंगे। आज से आप लोग भी मेरी धर्म की बहनें और माताएं हो चुकी हैं। आप लोगों को मैंने जो कुछ अपशब्द कहे, एवं आपके साथ जो कुछ दुव्यवहार किया उसके लिए मैं क्षमा-प्रार्थी हूँ । इस बात को सुनकर रानियों को बड़ी भारी प्रसन्नता हुई । और कुमार को राजा रूपसे एवं राक्षस को अपना धर्म - बन्धु रूप से स्वीकार किया ।
उस समय कुमार ने उन रानियों से आदर के साथ पूछा - माताएँ ! क्या आप लोगों के वंश में ऐसा पुरुष नहीं है, जो राज्य का उत्तराधिकारी बन सके । तत्र रानी गुणवती ने कहा- अरे परोपकारी कुमार ! हमारा वंश तो समाप्त ही हो चुका है, मैं चाहती हूँ कि मेरी चन्द्रमुखी नाम की इस कन्या के साथ विवाह सम्बन्ध जोड़कर आप ही हमारे इस राज्य के स्वामी हो जायँ ताकि हमारी सारी उलझनें दूर हो जायँ । यह प्रस्ताव उपस्थित हुआ देख कुमार ने कहा- माताएं ! अज्ञात