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जिन्दगी इन्शान की संग्राम है, . आदमी उठता रहे गिरता रहे। सर पकड कर बैठ जाना पाप है,
आदमी चलता रहे फिरता रहे ॥ संसार में जन्म लेकर कर्म तो निरन्तर करते ही रहना चाहिये । अकर्मण्य और प्रमादी हो कर पड़े रहना एक प्रकार का पाप है । कर्म करते समय यदि कर्म फलों का विचार होता रहे तो स्वभाव से ही बूरे कर्म हमारे द्वारा न होंगे । इसी बात को ' विपाक-विचय' नाम से धर्म-ध्यान कहा गया है। इस प्रकार के धर्म ध्यान से ऐहिक सुखों की प्राप्ति तो होती ही है पर मोक्ष की भी साधना संहज-भाव से हो जाती है। महापुरुष इसी लिये