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मोत्र - देवता ने ही उसका और तुम्हारा परम हित देख कर जिस रोज कुमार का जन्म हुआ था, उसी रात्री में सेठ लक्ष्मीदत्त को स्वप्न में आदेश दिया कि - 'तुमको राजा के उद्यान से प्रातः काल में फूलों के ढेर में सुरक्षित एक नवजात शिशु मिलेगा, उसे ले आओ ।' सेठ नेः वैसा ही किया । सेठ के लडका न था, अतः उसी को अपनी लडका मान कर जन्मोत्सव मनाया |
उसी बालक के पुण्य प्रताप से सेठ लखपति का करोड़पति बन गया । सेठानी लक्ष्मीवती ने भी बडे हर्ष से अपने पुत्र के अभाव में उसी को "मेरे गूढ गर्भ था " की बात प्रचारित करके अपने पुत्र की तरह ही लालन पालन किया । तुम्हारे द्वारा श्रीचन्द्र नामवाली अंगुठी जो कुमार के पास रखी थी उसीके आधार पर उन्होंने भी उसो सुन्दर 'श्रीचन्द्र' नाम को पसंद किया । कुटुम्बियों के सामने समारोह के साथ उसका श्रीचन्द्रकुमार नाम रख दिया ।
महाराज ? एक समय आपने उसे गोदी में लेकर क्या पुत्र सुख का अनुभव नहीं किया था ? क्या आपकी स्नेहभरी दृष्टि उसी पुत्र स्नेह के कारण श्रीचन्द्र के मुख पर नहीं गिरी थी ? | महाराज लक्ष्मीदत्त सेठ के घर बडा होने वाला अद्भुत चरित्रों वाला कुमार श्रीचन्द्र