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आते हैं। हम ऐसहभान होता है कि मेरो भाग्य ही आपको यहां खींच म है,
कुमार ने उसकी हाल सुन कर कहा बहिन ! मैं तो कोई राह चलता कापटिक हूँ। धेय रक्खों । मैं तुम्हें अवश्य इस दुःख से छुड़ाने की कोशीश करूंगा।
यह सुन शिवमती ने कहा- बन्धो,! कसा करके आप मुझे इस पापों के थि से छूडा- कर मेरे निवास स्थान नायक-नगर में पहुँचा दें, तो ऐसा करने पर आपको गुप्ति और मुक्ति का फल प्राप्त होगा। मेरी प्राण रक्षा होगी तथा मेरे, बच्चों से मेरा मिलाप हो जायगा और मैं और बच्चे आपको यावज्जीवन आशीर्वाद देते रहेंगे। .. उसकी करुणा भरी कथा को सुनकर कुमार का हृदय पिघल गया। उसने उस ब्राह्मणी-शिवमती को अपने साथ लिया और गुफा के द्वार से बाहर निकल कर उस शिला से तथा एक दूसरे पत्थर से गुफा के मुह को ढक दिया.फिर वे दोनों वहाँ से नायकपुर की ओर चले । कुछ घंटों में ही वे दोनों नायकपुर पहुंच गये। नगर में पहुंच कर कुमार ने शिवमंती को उसके घर लेजाकर उसके पति को सौंप दिया । उसके पति रविदत्त ने कुमार का बहुत आभार माना। इसकेतमाम अदिनिकों ने कुमार का बड़ा आदर
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