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सकार किया । शिवमती तरह सरह के वस्त्राभूषण लाकरे कुमार को देने लगी, पर कुमार ने कुछ भी लेनी स्वीकार नहीं किया अन्त में आग्रह पूर्वक शिवमती ने कुमार को स्मृति-चिन्ह के रूप में एक अंगूठी दी जिसे कुमार ने बडे आदर के साथ स्वीकार की। इसके पश्चात् पुन: कुमार उस 'चोर के निवास स्थान के पासकी बावडी के पीस लोट पाया और बैठ गया । ..... पहलेवाले पेड के नीचे वह जाकर बैठा ही था, कि वह चोर भी इसी दरभियान कुमार के पास आकर बैठ गया । परिचय पूछने पर कुमार ने अपना नाम लक्ष्मीचन्द्र तथा चौर ने अपना नाम रत्नाकर बतलाया ।
यह चौर मुझे द्वार खोलने के लिए कहे इसी अशि य से कुमार ने उससे पूछा कि हे मित्र ! तुम इतने उदात क्यों दिखाई पड़ रहे हो । ज्यों ही वह कुछ जबाब देने वाला था कि पांच पथिक एक ओर से आ निकले, और वहीं उसी पेड़ के नीचे बैठ कर विश्राम करने लगे। कुमार की दृष्टि चौर की पगडी में बंधी हुई गुटिका पर पडी और उसे प्राप्त करने की नीयत से कुमार ने पांचों पथिकों के सामने उस चौर से कहा कि मैंतुम्हारी और मेरी पगडी को एक शिला के नीचे देवा देता हूँ। हम