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( २३३ ) कर वह राजसभा में आया। वहां पर घूमते हुए उसने कोमल बिछौने वाले एक सुन्दर पलंग को देखा। यही राक्षस की शय्या होगी, ऐसा समझकर अपनी थकावट को दूर करने के लिए, अपनी अगरक्षा करके वह उस पर सो गया।
इधर वह राक्षस राजमार्ग में पुरुष के पदचिह्नों को देखकर बड़ा कुपित हुआ और शीघ्र ही वहां आ पहुँचा। अपनी शप्या पर सोये हुए कुमार को देखकर वह अत्यन्त विस्मित और क्रोधित होकर विचारने लगायह अत्यन्त तेजस्वी, शूरवीर, धैर्यवान् पुरुष कौन है ? कहां से आया है ?. यह बड़ा ही निर्भय प्रतीत होता है, जो मेरी शय्या पर भी इस शान्ति और धीरता के साथ सो रहा है । क्या मैं इसे उठाकर समुद्र में डाल दू? या इसे तलवार से काट दू? अथवा गदा से चूर चूर कर डालूँ ? - इस प्रकार विचार करते हुए उस राक्षस ने क्रोध में आकर कुमार को ललकारा-अरे ! तू कौन है ? गीदड़ होकर शेर के स्थान पर कैसे सोता है ? उठ ! जल्दी से उठ !! दुष्ट ! तुझे मेरा जरा भी डर नहीं है क्या ?
रावस की इस तर्जना को सुनकर भी निर्भीक कुमार