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( १९६ सबने पूछा-बाबा ! तुम इतने दिन कहां थे? क्या कोई आश्चर्य देखा ? उसने उत्तर दिया-बच्चों ! यहां से पूर्व की ओर महेन्द्रपुर नाम का एक सुन्दर नगर है। वहां का स्वामी त्रिलोचन नाम का राजा है, और उसके गुणसुन्दरी नाम की रानी है । सुलोचना नाम की जन्म से अन्धी उनके एक पुत्री है। वह इस समय युवावस्था को प्राप्त हो चुकी है। चौंसठ कलाओं में वह निपुण है। उसके हृदय-रूप नेत्र खुले हुए हैं । इसलिए वह अद्भुत काम भी कर लेती है । एवं कविताएं भी बनालेती है।
एक दिन राजाने उसके वर की चिंता की । अन्धी को कौन परणे और इसकी आंखें कैसे ठीक हो ? मंत्री से इसका परामर्श किया। राजा ने अपने राज्य में ढिंढोरा पिटवाया कि जो कोई इसे दृष्टि प्रदान करेगा उसे मैं अपना प्राधा राज्य दंगा । उसके साथ इस कन्या का विवाह कर दंगा पांच मास व्यतीत हो गये, फिर भी दृष्टि प्रदान करने वाला अभीतक कोई नहीं मिला। यह सुन, छोटे बच्चों ने पूछा-बाबा ! क्या कहीं कोई ऐसी दवा है ? जो अन्धे को देखता कर दे।
रहे तोते ने उत्तर दिया-बच्चों ? यह दवा किसी भयानक जंगल में ही मिल सकती है। यहां पर भी मिल