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सेठ के घर की तो क्या बताय? सारे घर में शोक का साम्राज्य था । सब चित्र लिखितः से बैठे थे। अाहों और सिसकियों के सिवाय कहीं से कोई आहट तक नहीं सुनाई देती थी । न खाने का पता था, न पीने का । सभी कुमार के वियोग , सागर में डुबकियां लगा रहे थे। स्थल पे पड़ी मछली के जसे सब तड़फ रहे थे। इसी अवस्था में रोते बिलखते और शोच करते उनको. तीन दिन बीत गये। ... चौथे दिन कुशस्थलपुर नगर में धर्मघोष नाम के कोई ज्ञानी गुरु पधारे । वनपालक ने महाराजा को बधाई. दी। महाराजा और महारानी अपने परिवार के साथ गुरु-वंदना के लिये पहुंचे । लक्ष्मीदत्त लक्ष्मीवती पभिनी चन्द्रकला आदि ओर भी कई धर्म प्रेमी नागरिक गुरुदर्शन-वन्दन के लिये गये । विनय-विधि से सबने श्रीगुरु महाराज को वंदन किया मुनिराज ने सबको बड़े उदात्त भाव से धर्मलाभ दिया । समी गरु दर्शन से आत्मा को कृत-कृत्यं मानते हुए गुरु वचनामृत का पान करने की उत्कण्ठा से यथास्थान बैठ गये। गुरु ने आत्मवाद-और कर्मवाद की धर्मकथा कही।
“य एव कर्माणि करोति लोकें, भुक्ते स एवेह च तत्कलानि ।