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परित्र से भक्तों की दान वीरोंकी और पर वीरों से कोटि में नाम लिखाने वाला था। वह बैठकमाई या पेटु नहीं तेजीको वाजले के समान सेठ समीद की बातो ने उसकी तेजी में चार चांद लगा दिये।
पपिनी चन्द्रकला की आज्ञा पाकर घर से निकले बाद वह स्वेच्छा से स्वतन्त्रता पूर्वक पुथ्वी में पर्यटन कर रहा था। कभी कोसों तक पैदल ही चलता जाता था तो कभी सवारी द्वारा । कमी दिन में, चलता था तो कभी रातमें वह शेर की भांति निर्भयता पूर्वक विचरता था । पंच परमेष्ठी महामंत्र के जाप से, योगी से प्राप्त औषधि द्वारा और अपने प्राचीन पुण्यों के प्रभाव से वह सुरक्षित था। - भोजन में उसकी यह विशेषता थी कि एक सोना मोहर देकर वह किसी बनिये की दुकान पर भोजन करता था। भोजन के मूल्य से अगर अधिक पैसे निकलते थे तो वह लेता नहीं था। अकेला भोजन नहीं करता था। उसका नित्य नियम. था कि पांच सात मनुष्यों को जिमा कर ही वह जीमता था। कहीं किसी दीन हीन दुःखी को वह देखता तो गुप्त रूप से उसकी भरसके मदद करता था।