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( १८ ) ओर मुडे । वीणाव भी कुमार को आशीर्वाद देता हुआ अपने घर की ओर चला गया।
विदेश-गमन के अपने दृढ-विचारों को कार्यान्वित करने के लिये कुमारने मित्र-गुणचन्द्र को सभी अधिकारियों का स्वामी, और धनंजय को प्रधान सेनाधिपति बना दिया। इसी तरह नगर-रक्षक, दुर्गरक्षक, प्रासाद-रक्षक
आदि २ पदों पर योग्य २ अधिकारियों की नियुक्ति करके अपने २ कामों को सुचारु रूपसे संचालित करने की आज्ञा दे दी । महाराज प्रतापसिंहसे प्राप्त श्रीपुर नगर को कुमार ने दूसरी अमरावती बनादिया।
बाद में कुमार ने राजसी वेश-भूषा और राजसी ठाठ बाठ के साथ राजा की तरह अपने भवन में प्रवेश किया इधर तिलक पुरकी राज कुमारी के साथ कुमार के ब्याह का आमंत्रण लेकर आने वाले प्रधान श्रीधीर मन्त्री गुणचन्द्र के साथ सेठ लक्ष्मीदत्त के पास पहूँचे और सेठ को कुमारके विवाह का निमन्त्रण दिया। . सेठ लक्ष्मीदत्त ने मंत्री से कहा-'महोदय ! आप दो दिन और प्रतीक्षा करें। एक दो दिन में कुमार श्रीचन्द्र महाराजा से मिलने को जायगा तब आप भी साथ चले जाना, और विवाह के लिये निवेदन कर देना । महाराजा की आज्ञा मिलते ही हम कुमार को तिलकपुर भेज देंगे।