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वीणा परिवार के साथ रथ पर बैठ कर अपने घर की और रवाना होने लगा, तो वे दोनों उत्तम घोडे हठात् उसे श्रीपुर की और ले गये । प्रयत्न करने पर भी वे उसके घर की ओर न चले ।
कुमार घोडों की स्वामी भक्ति को समझ गया । वह कुछ घुड सवारों को साथ ले कर श्रीपुर जा पहूचा । अपने स्वामी को देखते ही घोडे हिनहिना उठे । अपनी मूक. वाणी में स्वामि के प्रति स्नेह सम्मान प्रदर्शित करने लगे । कुमार की आंखें भी इस पशु-प्रेम से छल-छला गई ।
बाद में कुमार ने घोडों की पीठपर बड़े प्यार से हाथ फेरते पुचकारते हुए कहा प्यारे बाज बहादुरों ! तुम्हारे गुण अवर्णनीय हैं। तुमने मुझे अपार सुख दिया है । मैं तुम्हें अपने से जूदा करना नहीं चाहता था, परन्तु क्या किया जाय, समय ही ऐसा उपस्थित हो गया, कि मुझे अपने वचन की रक्षा के लिये तुम्हें इस गायक के हाथ सौंपना पडा है । अतः अपने स्वामी की वचन - रक्षा के लिये इसके साथ तुम खुशी से जाओ। तुम बडे स्वामीभक्त हो । अधिक क्या कहू ।
यह सुनते ही घोडों ने अपने स्वामी के प्रति कृतज्ञता जताते हुए वीणारव को लेकर उसके गम्य प्रदेशकी