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सन धन के साथ लज्मीदत सेठ के निवास स्थान पर जा पहुंची। . जब चन्द्रकला ने सुना कि मासीजी मिलने के लिये आ रही है, तो बड़ी तेजी से वह भी स्वागत में सामने आई और बड़े प्रेम से महारानी मासी सूर्यवतीजी को प्रणाम किया । महारानी ने भी उसे हृदय से लगा लिया
और माथे पर हाथ फेरते हुए आशीर्वाद दिये, कि बेटा! चिरंजीवी रहो। परस्पर कुशल प्रश्न के बाद पद्मिनी चन्द्रकला ने महारानी को अपना महल और दहेज की वस्तुओं को दिखाया। कुटुम्ब सम्बन्धी बातें भी खूब हुई। सेठ को पूछवा कर महारानी चन्द्रकला को अपने राजमहल में ले आई। ... महाराजा चन्द्रकला के विवाह में घटी घटनाओं को सुनकर अचरज में दब गये । कुमार को बुलाने के लिये महाराजा ने अपने खास आदमी मेजे। सेठ लक्ष्मीदत्त ने कुमार के निवास स्थान में पता लगाया पर कहीं भी कुमार की खोज खबर न मिली। सेठ बड़ा चिन्तित हुमा। छाती पोट कर बेहोश सा कहने लगा अरे! मेरा लांडलाबेटा घर से निकल गया है। कहां गया ? उसे ढूंढने के लिये नगर का कोना कोना छान डाला। कुमार के मित्र, सेवक, एवं सिपाहियों को इधर उधर दौड़ाया । सब