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प्रकार का खेदजनक विष्टिगोचर नहीं हो रहा था। अपनी धुन में मस्त कुमार मस्ती से बढ़ा जा रहा था, प्रासानी से वह थोड़ी ही देर में नगर से बाहर आ पहुँचा।
नगर के बाहर निर्जन में एकाकी कुमार के साथी केवल पूर्वोपार्जित पुण्य-कर्म ही थे। कुमार शकुन शास्त्र का ज्ञाता था तथा, उसमें विश्वास भी रखता था, अत: कुछ देर ठहर कर अनिश्चत की ओर बढ़ने से पहले उसने ध्यानपूर्वक पचियों की बोली सुनना प्रारम्भ किया। जिस तरफ शुभ शकुन युक्त पदी बोल रहा था, कुमार ने उसी तरफ प्रयाण किया।
चलते चलते रात्रि बीत गई आसमान में अरुणोदय की लाली छा गई । चिड़ियाँ सुमधुर स्वर में गा गाकर प्रामातिक स्वागत करने लगीं। सुगन्धि-शीतल-धीर समीर चलने लगा । रात्रि में बन्द हुए कुसुम खिलने लगे, और भ्रमर समूह अपने को मुक्त पाकर गुजार करता हुआ उड़ने लगा। मानो बन्धन से मुक्ति पा जाने के कारण होतिरेक से नाचता हुआ अपने मुक्तिदाता सूर्य का यशोगान कर रहा हो। चारों तरफ बिटकी हुई हरियाली
आंखों को तृप्त कर रही थी। पक्षियों की सुमधुर बोली कानों की तृप्ति का साधन बन रही थी। सुगन्धित शीतल