________________
कई दिन तक.जीमाये । कोकिल-ठी शामिन-वियों ने मंगल गीत गाये । खूब नाच गान हुए। तरह २.के आमोद प्रमोद हुए । याचकों को संतुष्ट किया गया।
दहेज की सामग्री को देखकर लोग बहुत संतुष्ट हुए। कोई श्रीचन्द्र के गुण और रूप की प्रशंसा करने लगे तो कोई उसके रथ की बड़ाई करने लगे। किसी ने पद्मिनी के रूप की महिमा गाई तो किसी ने सेठ सेठानी का पुण्य सराहा । किसी ने दीपशिखा को धन्यकहा तो किसी ने कुशस्थलपुर को धन्यवाद दिया । उत्सव बड़े ठाठ से मनाया जा रहा था। । .. इसी बीच में जय प्रादि राजकुमारों ने डाह से जलते हुए कुमार को संकट में डाल ने की बात सोची। उन्हें पता चला कि तिलकपुर से धीर मंत्री के साथ कीखारव नाम का गवैया भाया हुआ है। उन्होंने उसे अपने पास बुलाया और कहा कि यदि श्रीचन्द्र प्रसन्न होकर कुछ मांगने के लिये कहे तो उसके रथ का घोड़ा मांगलेना । इस के बदले में हम तुमको भारी इनाम देंगे। लालच बुरी बला होती है। उसीसे प्रेरित हो वीणारष ने भी मंजूर करलिया । जैसी होनी होती है वैसी ही बुद्धि भी हो जाती है।