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मैं ले साहसी है। साहस से क्या सिद्ध नही होता १ कहा
... को विदेशः सुविधानां, किं दूर व्यवसायिनाम् ।
कोऽतिभारः समर्थानां, कपरः प्रियवादिनाम् ।।
अर्थात-विद्वानों को कोई विदेश नहीं, व्यवसाय कर ने वालों को कोई स्थान दूर नहीं, समर्थ पुरुषों के लिये कोई भार, भार नहीं और प्रिय बोलने वालों के लिये कोई पराया नहीं हुआ करता है। ___ साहस के साथ की हुई विदेश यात्रा से अनेकों लाभ होते हैं कहा भी है
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दीसइ विविहच्छरियं, जाणिज्जई सुयणदुज्जणविसेसो । अप्पाणं च कलिज्जइ, हिंडिज्जइ तेण पुहवीए॥
अर्थात्-अनेक प्रकार के श्राश्चर्य देखने को मिलते हैं। सज्जन दुर्जनों की विशेषतायें भी जानने को मिलती हैं। अधिक क्या? आदमी को अपनी ताकत का भी अंदाज लग जाता है । इसीलिये पृथ्वी में विदेश यात्रा के लिये चलना चाहिये।