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बीमारप गायक ने श्रीचन्द्र की कामदात श्लोक पढ़ें। __ आस्ये पद्मधिया गभीरहृदये वारांनिधेः शंकया
नाभौ पद्मनभ्रमाक्रम-कर-द्वन्द्व ऽरुणाजेहया ।
फुल्लेन्दीवर-वाग्छया नयनयो दन्तेषुवीकर: भ्रान्त्या कल्पतरुभ्रमेण वपुषि श्रीचन्द्र ! ते श्रीरभूत् ॥ - अर्थात्-हेश्रीचन्द्र ! आपके मुख में कमल मानकर, गंभीर हृदय में समुद्र की शंका से, नाभि में पचहद की भ्रांति से, चरणों में और हाथों में लाल कमल की भावना से, नयनों में नील कमल की चाहना से, दातों में बजाकर की भ्रान्ति से, और शरीर में कल्पवृक्ष के भ्रम से लक्ष्मी रह रही है। * , क्षारो वारिनिधिः कलंक-कलुषश्चन्द्रो रविस्तीब्ररुक,
जीमूत श्चालाश्रयोऽथि-पटलादृश्यः सुवर्णाचलः
काष्टं कल्पतरु ईषत्सुरमणिः स्वर्धामधेनुः पशुः . 1. श्री चन्द्रास्ति सुधा द्विजिव्हविधुरा तत्केन साम्यं तव ॥
अर्थात्-हे श्रीचन्द्र ! अगर तुम्हारी समता समुद्र से करें तो वह खारा है। चन्द्रमा से करें तो वह कलंकी है। सूर्य से करें तो वह असह्य ताप वाला है। बादल से करें तोवह जलाने वाली चपल बीजली का पात्रक है। मेल