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तिरस्कार करने वाले श्रीचन्द्र को देख कर राजा दीपचन्द्र
देव आश्चर्यचकित हो गये। - राजा को अपने घरपर आये देख वरदत्त स्वागत के लिये शीघ्रता से उठ खडा हुआ । उपस्थित व्यवहारियोंके व श्रीचन्द्र के साथ उनके सन्मुख जाकर बड़े आदरसे उन्हें लिवा लाया। एक रत्नजटित स्वर्ण-सिंहासन पर राजा के बैठ जाने पर श्रीचन्द्र ने राजा को प्रणाम किया। राजा दीपचन्द्रने भी बड़े प्रेम से कुमार को गोद में बिठाया और किसी अज्ञात दौहित्र-सुख का अनुभव किया । ज्योंही वरदत्त ने कुमार का परिचय दिया, त्योंही वीणारव गायक ने कहा देव ! ये वे ही श्रीचन्द्र कुमार हैं जिनकी कीर्ति-कथा हमने प्रबन्ध में गाई थी। यह कुमार याचकों के लिये कल्प-वृक्ष के जैसे हैं। हम सदा इनकी जय मनाते हैं।
इधर चन्द्रकला को लेकर प्रदीपवती और चन्द्रवती भी कुमार को देखने की उत्कंठा से वहां वरदत्त के घर ही आ पहुँची। शुभ-लक्षण और गुणों से संपन्न कुमार को देख कर सभी बोल उठे
"अहो ऐसे गुणवाले इस कुमार को पति बनाने का निश्चय करके सचमच चन्द्रकला ने ठीक ही किया है। चन्द्रकला चन्द्र के साथ ही तो रहा करती है।