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( १७१ ) तुम्हारे लिये रत्नपुर नाम का एक बड़ा नगर प्रदान किया है। अब अपनी ओर से कृतज्ञता प्रकट करने के लिये एक दिन उनसे अवश्य मिलो।
कुमारने कहा पिताजी ! आपकी आज्ञासे गुणियों का समादर करने वाले महाराज की सेवा में उपस्थित होकर अवश्य मैं अपना कर्तव्य पालन करूगा । इस प्रकार कहते हुए कुमार के शरीर पर माता की नजर पड़ी । हाथ में बंधे कंगनदोरडे को देख कर उसने पति से कहा, देखिये कुमार तो कहीं बनडा बन कर आया है। आश्चर्य चकित हुए सेठने कुमार से कहा बेटा ! बताओ तो सही कि क्याबात है ? कुमारने कहा किसी पण्डित का दिया हुआ अप्राप्य वस्तु को प्राप्त कराने वाला यह महा प्रभावशाली कंगन दोरडा है । सेठने कहा-कहीं कोई विवाह करके आये दीखते हो ? क्यों ठीक है न ? इस पर कुमार चुप हो गया।
सेठ सेठानी खुश होते हुए कहते हैं बाबा नन्द के फंद गोविंद जानें । कुमार की लीला का कोई आर पार नहीं है। इस प्रकार सभी प्रसन्नता पूर्वक समय बिताने लगे।