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( १६७ ) प्रमुख राजमार्गों से होकर सवारी के तौर पर मय--दहेज सामग्री की सजावट के साथ निकले ।
मार्ग में स्थान स्थान पर नाच गान होते जाते थे । गगनभेदी तोपों की गडगडाहट के बीच जोरों की जयध्वनियां हो रही थी । चन्द्रकला अपने भाग्य पर इठलाती हुई मन ही मन प्रसन्न होकर अपने को धन्य समझ रही थी । कुमार स्थान २ पर दान देता हुआ अपने विवाह की खुशी में सजाये हुए नगर की शोभा को देखता जाता था । क्रमशः सवारी निश्चित उतारे पर जा पहुंची । वहां विवाह की बाकी रही सारी विधि सम्पन्न की गई । अपनी तरफ से कुमार ने सारे नगर -निवासियों को भोजन कराया । इस प्रकार चारों ओर खुशी का साम्राज्य छा गया ।
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इधर तिलकपुर से आये हुए धीरमंत्री ने विश्वस्त सूत्रों से निश्चय करके भारी प्रसन्नता से श्रीचन्द्रकुमार के पास कर प्रार्थना की कि "हे कुमार ! तिलकपुर में राधावेव की साधना करके आप चुपचाप चले आये तबसे वहां आपके विवाह की प्रतीक्षा की जा रही है । कृपा कर आप को वहां चलना चाहिये ।"
कुमार ने उत्तर दिया - " मंत्रिजी ? आपके इस ग्रामंऋण का मैं आदर करता हूं । परंतु इस विषय में मेरे पिता