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देव की पद्मिनी कन्या--चन्द्रकला से ब्याह के लिये की हुई प्रार्थना को थोडासा किन्तु परन्तु कर के अपने लिये अधिक गौरव का स्थान प्राप्त कर लिया ।
राजा रानी की और परिवार वर्ग की अनुमति से और श्रीचन्द्रकुमार की स्वीकृति से राजकन्या चन्द्रकलाने बडी प्रसन्नता से आगे बढ कर सुन्दर सुगंधी फूलों की वरमाला कुमार के गले में पहना दो । लजावनत होती हुई तिरछी नजर से कुमार की अलौकिक रूप-माधुरी को अनिमेष भाव से निहार कर मन ही मन अपने जन्म को सफल समझने लगी। ___ उस समय कुमार मनमें कुछ सोच समझ कर वहां से उठ खडा हुमा और. शौचादि का बहाना बना कर सारथी समेत अट्टालिका से नीचे उतर आया । गुणचन्द्र ने रानियों से कह दिया कि अगर कुमार रथमें बैठ गया. तो फिर गया समझियें हाथ नहीं आने का है । इस बात को जान कर वामांग कुमार और चतुरा अदि सखियां कुमार को घेर कर प्रेम-पूछेक महल में वापस लिया लाये।
कुमार ने एक पान का बीडा देकर चतुरा से कहा कि अपनी मलकनी को देकर इसके गुणों का वर्णन करा
ओ-तब कोकिलकण्ठी राजकुमारी ने अपने प्रियके पहिले 'प्रसाद को पाकर प्रेसभेता से कहना शरु किया।