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इस लोगों को दिव्य दर्शन में साथ देने के लिये ही मामी. सूर्य देव का भी बाकास में पाना हमारे इस प्रकार प्रातःकाल होने पर हमेशा के नियमानुसार सबकी आज्ञा से. श्रीचन्द्रकुमार सामायिक प्रतिक्रमण-देवपूजा, आदि कृत्यों में लग गया।
राजा रानी राजकुमार-कुमारी सभी वरदत्त सेट से सत्कारित सन्मानित होते हुए अपने राजमहल में आये । प्रातः कृत्यों से निवृत्त हो राजा ने ज्योतिषी से विवाह लग्न पूछा । पण्डित ने कहा,देव ! कल वैशाख-शुक्लापंचमी का दिन वैवाहिक कार्य के लिये सब रेखाओं से शुद्ध और शुभ है।
राजा दीपचन्द्र-देव ने कन्या के पिता राजा सुभगांगकहा कि इस समीपवर्ति लग्न में कुशस्थलेश्वर महाराजाधिराज प्रतापसिंहजी कैसे आ सकेंगे ? इस काम में उनकी उपस्थिति अत्यधिक वांछनीय है । इस पर ज्योतिषी ने कहा महाराज ! यदि आप सबका भला चाहते हैं तो ननु नच किये विना कल के मुहूर्त में "शुभस्य शीघ्र" के न्याय से विवाह कर दीजिये । ऐसी नैमितिक की सलाह से विवाह की तैयारियाँ होने लगी।
रानीप्रदीपवती ने विकार किया यह मेरी पुत्रीमर्यवती के कुशस्थल पुर के नगर निकासी सेठ का पुत्र है। इसलिके
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