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दीपचन्द्र देव को कहलाया कि स्थिति यह है इसलिये
आप श्रीचन्द्रकुमार की खोज करावें । चतुसने भी जाकर कुमारी के बेहोश होने आदि का सारा वृत्तान्त राजा से कह सुनाया।
- यह सुन सभा-विसर्जन करके राजा दीपचन्द्र देव और रानी प्रदीवती वहां आये । वार २ पूछने पर हिमालय की तरह अचल रहने वाली कुमारी ने उन सब को वही उत्तर दिया जो पहले अपनी माता को दे चुकी थी।
इस अवस्था में राजाने सोचा इसके कल्याण के लिये ही हमारा स्वयंवर आदि का विचार था । जब कि यह चाहती है, और यदि चाहना के मुताबिक काम न हुआ तो यह मरना चाहती है। ऐसी अवस्था में हमारे आग्रह का भी न रहना श्रेयस्कर है, आखिरकार विवाह से जो फलाफल होना है वह इन्ही को तो होगा। हम लोग तो निमिच मात्र हैं। इसमें भी प्रधानता पूर्वकृत-कर्म संस्कारों की ही रहेगी न ?
इस प्रकार सोचते २ राजाने श्रीचन्द्र-कुमार की बड़े जोरों से खोज करनी शरु करदी। थोडे ही समय में वरदत्त सेठ के घरमें होने की खबर भी मिल गई। वे शीघ्र ही वरदत्त सेठ के घर पहुंचे। वहां रूपमें कामदेव का