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( १४२ ) कुमार ने यह निश्चय किया कि निस्संदेह यह पविनी है। उसे सकाम भाव से देखता हुश्रा कुमार धीरे २ मित्र के साथ उद्यान से बाहर निकल आया। ___ उधर वह राज कन्या भी धीर. ललित, गति,वाले वीर कुमार को देख कर मोहित हुई अपनी चतुरा सखी से बोली प्रिय सखि ! मेरे चित्त के सर्वस्व को चुराने वाले ये पुरुषसिंह कौन हैं ? और कहां के निवासी हैं ? । उनके साथीं को पूछ कर परिचय तो प्राप्त करो। . . आज्ञा पाते ही चतुरा गुणचन्द्र के पास जा पहुंची और बड़ी नम्रता से बोली-हे. आर्य ! मैं चन्द्रकला नाम: की राजकन्या की चतुरा नाम की दासी हूं.। कुमारी ने यहां आप लोगों के दर्शन किये हैं। स्निग्ध भाव से मेरे द्वारा स्वागत करती हुई वे कुमार के नाम और निवास स्थान को जानना चाहती हैं। अतः आप बताने की कृपा करें। और अपना परिचय दें। चतुरा के पूछने पर ज्यों ही मित्र गुणचन्द्र ने प्रसन्न होकर कुमार का कुछ परिचय दिया, त्यों ही कुमारने उसे बलपूर्वक रोक कर नगरी की ओर आगे बढना जारी रखा। नगरी की विशाल सड़कें, कोट कांगरों की कारीगरी सजी हुई सुन्दर दुकानों की श्राणियां, आकाश से बात करनेवाले उंके