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.. ( १४३ ) उंचे राजमहल और चतुरशिल्पियों के कला कौशल को प्रकट.. करनेवाले श्रोणिबद्ध- भव्यम्भवन... इन सबको देखता हुमा कुमार भगवान श्रीआदिनाथ के मंदिर के पास पहुँचा । श्रीजिन दर्शन की भव्य भावना से उसने विधि पूर्वक मन्दिर में प्रवेश किया।
उधर'चतुरा से सारा हाल सुनकर कुमार की उपेदावृत्ति से दुखी हुई चन्द्रकला ने दृढता से कहा कि मैंने अपने मन से इन कुमार के प्रति पति-भाव धारण कर लिया है। ये कुमार ही इस जन्म में मेरे पति होंगे । मेरा अन्तःकरण ही इसमें पक्का प्रमाण है । इनका पता जानने. के लिये हमें इनके पीछे चलना चाहिये। ऐसा कह वह सखियों के साथ कुमार के पीछे पीछे चली । कोविंदा नाम की सखी को अपने मन की बातें बताने के लिये अपनी मां चन्द्रवतीजी के पास भेज दी। . . इस प्रकारः पमिनी चन्द्रकला श्रीचन्द्र कुमार कार अनुसरण करती हुई श्रीजिन मंदिर में पहुँची। वहां कमार द्वारा कराती हुई भाव भरी भगवान की स्तुति को सुन कर वह बड़ी प्रसन्न हुई। उसने भी भगवान को विधि पूर्वक वंदन किया। वहां चतुराने गुणचन्द्र को इशारे से कुमार का नाम 'व'स्थान पूछा । उसने भी इशारे से ही कुमार