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साथ तरह २. की कला-बाजियों से राजा को बन कर रहा था | अंत में उसने अनेक भाषाओं और राग रागगियों से युक्त श्रोताओं के कानों में अमृत जैसा श्रीचंद्र का निर्मल चरित्र गामा शरू किया।
सभी सभासद उपर को गर्दन उठाये कान देकर मंत्र मुग्ध सुन रहे थे। राजा के पीछे की तरफ परदे की प्राड में बैठी हुई महारानी प्रदीपवती महाराजा की भतीजी राजा सुभगांग की रानी चन्द्रवती आदि रानियां भी बंडे चाव से सुन रही थी।
इस बीच में कोविदा और चतुरा.नाम की दसियों ने आकर कुमारी चन्द्रकला के संकल्पों को स्पष्ट किया। कुशस्थानपुर के श्रीचन्द्रकुमार के प्रति कुमारी का स्नेह हो चुका है। उद्यान में-मिन्दर में कुमार के देखे बाद कुमारी ने दृढ संकल्प कर लिया है कि इस जन्म में यदि पति होगा तो वह कुमार ही होगा । अतः आप लोग उचित प्रबंध करें ।
इस बात को सुन कुमारी की माता चन्द्रवती ने कहा कि ऐसा कैसे हो सकता है । कुल-शील का पूरा पता लगे विना अज्ञान अवस्था में कैसे यह संबंध हो सकता है । चलो चाचाजी के पास चलें और उन्हें इस समाचार से अवगत करें।