________________
( १४६ ) इधर गुणचन्द्र ने कुमार श्रीचन्द्र को कुमारी के संकेत से प्रेरित हों कछ देर ओर ठहरा ने के लिये राजभवन श्रादि दर्शनीय स्थानों को देखने का प्रस्ताव रखा । परन्तु स्त्रीलाम की ओर से निस्पृह वृत्ति वाले कमारने उसके प्रस्तावाको ठुकरा दिया। जल्दी से रथाकी. और चलते हुए उनने राजमहल-बाजार--चौराहे प्याउाँम्बाक डियाँ दुकान-मकान आदि सरसरी निगाह से देख लिये और सोधे रथ की ओर जा पहुंचे।
कुमार की इस निस्पृहवृत्ति को मन ही मन सराहता हुआ गुणचन्द्र इस प्रकार के उदार और आदर्श गुणी दोस्त को पाने के कारण अपनी आत्मा को धन्य मानता हुआ, अपने भाग्य को अत्यधिक मानने लगा। उसने सोचा अभी तक न वह कन्या आई न वह दासी ही यहां कहीं दिखाई देती हैं । चलने की उतावल करनेवाले कुमार को कैसे ठहराउं ? इतने में उसे बडी मथुर, मुरभवनि के साथ संगीत सुनाई दिया। उसमे कुमार से: कहा-देवः? इस मधुर संगीत में भारी आकर्षण है। इसः देश के इस प्रकार के संगीत का रसास्वादन बार २ कहां होगा ? मेरी राय में इस आनंद का रसास्वाद लेकर फिर पीछे. अपन रथ की ओर चलेंगें। कुमारने भी मित्र के इस प्रस्ताव पर सहमति प्रकट की। संगीत की सुधामधुर स्वर लहरी में दोनों दोस्त लीन होगये।