________________
१६ संसार में आदमी सोचता कुछ है। प्रकृति में कुछ ओर ही निर्माण होता जाता है। इसी लिये ज्ञानी लोग फरमाते रहते हैं कि निरमिमान भावसे संसार के प्रत्येक काम को करते जायो। होना है वह होकर के ही रहता है और नहीं होना है वह कितना ही संकल्प विकल्प करते रहो नहीं होगा। संसार का प्रत्येक प्राणी प्रकृति की. अनंत श्रृंखला की एकः २ कडी रूप है। प्रत्येक कडी दूसरी कडीथों से जुड़ी हुई हैं। अपेक्षा रहित कहीं कुछ नहीं है।
दीपशिखा के सेंठ वरदत्त को स्वप्न में भी खयाल नहीं था कि मेरे बच्चे के लेखशाला समारोह में मेरे माननीय सेठ लक्ष्मीदत्त या उनके कुमार श्रीचंद्र आसकेंगे।