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( १३३ ) अर्थात्-जो भव्यात्मा कच्ची दो घड़ि अडतालीस मिनीट तक समभाव से सामायिक करता है वह कर्मों की निर्जरा करता हुआ कम से कम वैमानिक देवता के आयुप्य का अधिकारी होता है । ॥१॥ जो त्रस और स्थावर बीवों के प्रति शत्रु मित्र भाव की विषमता न रखता हुआ समभाव रखता है। वही व्यक्ति सामायिक करने का अधिकारी होता है ॥२॥ एक आदमी हमेशा एक लाख खांडी(सोलह मण की एक सांडी) सोना दान करता है और दसरा केवल सामायिक करता है । वह सोना देने वाला सामायिक करने वाले की बराबरी नहीं कर सकता ॥३॥
जह अहिणा दठ्ठाणं, गारुडमंतो विसं पणासेइ। . तह नवकारो मंतो, पाव विसं नासेइ असेसं ॥१॥ : न य तस्स किंचि पहवइ, डाइणि देयाल रक्ख मारीयं । न कार पहावेण य, नासंति असेस दुरियाई ॥२॥ थंभइ जल जलणं चिंतियमित्तो वि पंच नमुक्कारो। अरि-मारि-चोर-राउल-घोरवसग्गं पणासेइ ॥३॥ जे के वि गया मुक्खं, गच्छंति य केइ कम्ममल मुक्का । ते सव्वे विय जाणसु, जिण नवकार पहावेण ॥४॥
अर्थात्-सांप डसे आदमियों के विष को जैसे गारुडि.मंत्र नष्ट कर देता है उसी प्रकार नवकार मंत्र मनुष्यों के पाप रूपी विष को मिटा देता है । ॥१॥ नवकार मंत्र