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फल देते हैं। पर साधुओं का सत्संग तत्काल फल देने वाला होता है । इसीलिये कहा है
साधूनां दर्शनं पुण्यं - तीर्थ-भूता हि साधवः । तीर्थ फलति कालेन – सद्यः साधु-समागमः ॥
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कुमार साधु दर्शन से आत्मा को कृतार्थ मानता हुआ बड़े विनय से उन साधु महाराज को नमस्कार करके अपने उचित स्थान पर बैठ गया । उन मुनिराज ने भी धर्मलाभ रूप आशीर्वाद देकर उन्हें अधिकारी समझ समयोचित धर्मोपदेश दिया |
भव्यात्माओं । मानव जीवन बड़ी कठिनता से प्राप्त होता है। उसमें भी आर्यदेश और श्रावककुल में जन्म पाना और भी कठिन होता है । उसके पा लेने पर भी आरोग्यमय दीर्घ आयुष्य, सद्गुरु का समागम, शास्त्र - श्रवण, ताश्विक बातों की श्रद्धा और सदाचार में शक्ति को लगाना किसी भाग्यशाली को ही प्राप्त होता है।
महानुभावों ! अप्राप्य सामग्री को पाकर के भी प्रमादी मानव धर्माचरण से वंचित रह जाता है । इसलिये प्रमाद को छोडकर दान शील तप और भाव रूप धर्म में पुरुषार्थ को लगाना चाहिये । धर्माराधन से ही प्राणी